आहिस्ता -आहिस्ता
समय हो तो अपनी हथेली पर भी रख लेना एक फूल, घूम आना स्मृति के मेले में, कहानी की किताब में झांक कर, कर लेना बातें ' पंडित विष्णु शर्मा ' से, या घर ले आना ' नौकर की कमीज़ ' सुन लेना रजनीगंधा की फूल या ठुमक लेना ' झुमका गिरा ' की धुन पर कह लेना खुद से भी "Relax ! चंद कदम ही तो हैं, चल लेंगे आहिस्ता-आहिस्ता हम भी, तुम भी।।
ये भी एक कडवी सच्चाई है ... इतिहास का सबक अगर कोई सीखना चाहे तो ... पर क्या होगा ... कहीं इतिहास दोहराएगा तो नहीं अपने आप को ...
जवाब देंहटाएंआखिर बरबादियों की ओर चल पड़े हैं हम। फिर भी उम्मीद कायम रखनी ही होगी।
जवाब देंहटाएं